पहली कटौती का असर: क्या भारत में भी सस्ता होगा कर्ज? फेड के फैसले के बाद जानें। 👇
अमेरिका के केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व (Fed), ने हाल ही में अपनी प्रमुख ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की है। यह कटौती इस साल की पहली कटौती है और इसका सीधा असर न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर होगा, बल्कि वैश्विक बाजारों, खासकर भारत जैसे उभरते बाजारों पर भी इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
फेड ने क्यों घटाईं ब्याज दरें?
फेडरल रिजर्व मुख्य रूप से दो लक्ष्यों को ध्यान में रखकर अपनी मौद्रिक नीति तय करता है: अधिकतम रोजगार और स्थिर कीमतें। हाल के महीनों में, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसे संकेत मिले हैं, जिन्होंने फेड को दरें घटाने के लिए प्रेरित किया:
कमजोर होता रोजगार बाजार: नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि अमेरिका में नौकरी के अवसर उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ रहे हैं। बेरोजगारी दर में भी थोड़ी वृद्धि हुई है। फेड का मानना है कि दरें कम करने से व्यवसायों के लिए कर्ज लेना सस्ता होगा, जिससे वे निवेश और विस्तार कर पाएंगे और नई नौकरियां पैदा होंगी।
आर्थिक विकास में सुस्ती: कुछ आर्थिक संकेतकों से यह भी पता चला है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर धीमी हो रही है। दरें घटाने से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी, जिससे उपभोक्ता खर्च और निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।
महंगाई पर नियंत्रण: हालांकि अमेरिका में महंगाई अब भी फेड के 2% के लक्ष्य से ऊपर है, लेकिन कुछ हद तक यह स्थिर हुई है। फेड को लगता है कि रोजगार और आर्थिक विकास के जोखिमों को कम करने के लिए दरें घटाना जरूरी है, भले ही महंगाई पूरी तरह से नियंत्रण में न आई हो।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?
फेड की ब्याज दर कटौती का अमेरिका पर सीधा और व्यापक प्रभाव पड़ता है:
कर्ज लेना सस्ता: व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए होम लोन, कार लोन, और व्यापारिक लोन पर ब्याज दरें कम हो जाएंगी। इससे लोगों की खरीदारी क्षमता बढ़ेगी और कंपनियों को निवेश के लिए अधिक प्रोत्साहन मिलेगा।
बचत पर कम रिटर्न: बैंक बचत खातों और अन्य जमा योजनाओं पर ब्याज दरें कम कर सकते हैं, जिससे बचत पर मिलने वाला रिटर्न घट जाएगा।
शेयर बाजार में तेजी: ब्याज दरें कम होने से कंपनियों के लिए कर्ज लेना और लाभ कमाना आसान हो जाता है, जिससे शेयर बाजार में तेजी आ सकती है। निवेशक शेयर बाजारों में अधिक पैसा लगाएंगे क्योंकि बॉन्ड और अन्य निश्चित आय वाले साधनों पर रिटर्न कम हो जाएगा।
भारत पर इस फैसले का क्या प्रभाव होगा?
अमेरिकी फेड के इस कदम का भारत की अर्थव्यवस्था और बाजारों पर गहरा असर होगा, और इसके कई सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं:
विदेशी निवेश में वृद्धि: जब अमेरिका में ब्याज दरें कम होती हैं, तो विदेशी निवेशक (FIIs) बेहतर रिटर्न की तलाश में भारत जैसे उभरते बाजारों की ओर रुख करते हैं। इससे भारतीय शेयर बाजार में पूंजी का प्रवाह (capital inflow) बढ़ेगा, जिससे बाजार में तेजी आएगी।
रुपये का मजबूत होना: अमेरिकी ब्याज दरों में कटौती से डॉलर कमजोर हो सकता है, जबकि रुपये की मांग बढ़ सकती है। इससे भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत होगा। मजबूत रुपया आयात को सस्ता बनाएगा (जैसे- कच्चा तेल), जिससे भारत का चालू खाता घाटा (current account deficit) कम हो सकता है।
रिजर्व बैंक पर दबाव: फेड के फैसले के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) पर भी अपनी रेपो रेट (Repo Rate) में कटौती करने का दबाव बढ़ेगा। अगर RBI दरें घटाता है, तो भारत में भी होम लोन और अन्य कर्जों पर ब्याज दरें कम होंगी, जिससे आम आदमी को राहत मिलेगी और आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।
सोने और कमोडिटी पर असर: ब्याज दरें कम होने से डॉलर कमजोर होता है, जिससे सोना जैसी कमोडिटी की कीमतें बढ़ सकती हैं। निवेश के लिहाज से सोना और आकर्षक हो जाता है।
निष्कर्ष
फेडरल रिजर्व का यह फैसला एक रणनीतिक कदम है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी अर्थव्यवस्था को संभावित मंदी से बचाना और आर्थिक विकास को गति देना है। इस फैसले का वैश्विक प्रभाव होगा, और भारत के लिए यह एक सकारात्मक संकेत है। कम ब्याज दरों से भारत में विदेशी निवेश बढ़ सकता है, रुपया मजबूत हो सकता है, और RBI द्वारा दरों में कटौती का रास्ता खुल सकता है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिलेगी। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि वैश्विक आर्थिक स्थिति कैसी रहती है और भारत में महंगाई किस तरह से नियंत्रित रहती है।