टाटा की कंपनी TCS में ‘जॉब संकट’! AI की आंधी में उड़ी हजारों नौकरियां, कर्मचारियों में डर और अनिश्चितता का माहौल

मुंबई: देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) में इन दिनों माहौल तनावपूर्ण है। कंपनी द्वारा 12,000 से अधिक (जो कि कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक 30,000 तक हो सकती है) कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा के बाद से ही हज़ारों कर्मचारियों पर नौकरी खोने का खतरा मंडरा रहा है।

यह सिर्फ छंटनी नहीं है, बल्कि ‘जबरन इस्तीफ़ा’ दिलाए जाने के आरोपों ने कर्मचारियों की चिंता और बढ़ा दी है। अचानक एचआर से ईमेल आना और कुछ दिनों के नोटिस पर नौकरी छोड़ने को कहा जाना, अनुभवी कर्मचारियों को भी रातों-रात बेरोज़गार बना रहा है।

असुरक्षा की लहर: डर में काम कर रहे हैं कर्मचारी

एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “ऑफिस में हर कोई डरा हुआ है। किसी को नहीं पता कि अगला नंबर किसका होगा। 8–10 साल के अनुभवी सीनियर्स को भी अचानक बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।” कर्मचारियों का आरोप है कि कंपनी उन्हें ‘फ्लूइडिटी लिस्ट’ में डाल रही है और फिर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है, ताकि कंपनी की आधिकारिक छंटनी के आंकड़ों पर असर न पड़े।

छंटनी की वजह: AI और ‘भविष्य की तैयारी’

TCS ने इन कटौतियों को ‘भविष्य के लिए तैयार संगठन’ बनने की रणनीति का हिस्सा बताया है। कंपनी AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और नई टेक्नोलॉजी में निवेश पर जोर दे रही है, जिससे कई पारंपरिक भूमिकाएं अप्रासंगिक हो रही हैं। यानी, बदलाव की इस दौड़ में जो कर्मचारी खुद को री-स्किल नहीं कर पा रहे हैं, उन पर तलवार लटक रही है।

AI और स्किल मिसमैच का बहाना?

CEO के. कृतिवासन ने छंटनी को ‘AI’ या ‘कॉस्ट कटिंग’ का परिणाम मानने से इनकार किया है। उनके अनुसार, यह ‘स्किल मिसमैच’ और ‘रीडप्लॉयमेंट की सीमाएं’ हैं। यानी, कंपनी को अब नए ज़माने की स्किल्स वाले प्रोफेशनल्स चाहिए, और पुराने रोल अब ‘आउटडेटेड’ हो चुके हैं।

हालांकि, कर्मचारी यूनियन इस तर्क को खारिज कर रहे हैं, उनका कहना है कि कंपनी जानबूझकर अनुभवी लोगों को हटाकर कम सैलरी पर फ्रेशर्स को हायर कर रही है ताकि मुनाफा बढ़ाया जा सके।

कर्मचारी यूनियनों का विरोध

कर्नाटक राज्य आईटी कर्मचारी संघ (KITU) ने इस छंटनी को अवैध बताते हुए कंपनी के खिलाफ आवाज़ उठाई है और सरकार से दखल की मांग की है। यूनियनों का कहना है कि यह ‘जबरन इस्तीफ़ा’ श्रम कानूनों का उल्लंघन है।

राहत की खबर?

हालांकि, इस तनाव के बीच एक राहत की खबर भी है। कंपनी ने छंटनी के बाद बचे हुए 80% कर्मचारियों के वेतन में औसतन 4.5 से 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी की घोषणा भी की है। लेकिन क्या यह ‘डैमेज कंट्रोल’ उन कर्मचारियों का डर कम कर पाएगा, जो आज भी अनिश्चितता के साए में काम कर रहे हैं?

सवाल बड़ा है: क्या यह छंटनी सिर्फ़ एक कंपनी का फैसला है, या फिर यह आईटी सेक्टर में ‘AI क्रांति’ की कीमत है, जो हज़ारों कर्मचारियों को चुकानी पड़ रही है? यह देखना होगा कि टाटा की यह दिग्गज कंपनी इस संकट से कैसे निपटती है और कर्मचारियों को कैसे सुरक्षा दे पाती है।

आगे क्या?

मामले ने इतना तूल पकड़ लिया है कि कर्नाटक श्रम मंत्रालय ने कंपनी से छंटनी का कारण पूछा है। वहीं, अब सभी की निगाहें कंपनी के तिमाही नतीजों पर टिकी हैं, जब उम्मीद है कि TCS इस पूरे विवाद पर आधिकारिक रूप से कोई प्रतिक्रिया देगी।

यह छंटनी सिर्फ TCS का मामला नहीं, बल्कि पूरे भारतीय आईटी सेक्टर के लिए एक ‘वेक-अप कॉल’ है, जो बताता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन के दौर में अब ‘स्थायी नौकरी’ एक अतीत की बात बन सकती है। कर्मचारियों को अब हर पल ‘री-स्किल’ करते रहने की चुनौती है, नहीं तो AI की आंधी किसी भी पल उनकी नौकरी को उड़ा सकती है।

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